माताजी के वचन भाग-१

एकाग्रता का मूल

मैं तुम सबमें द्वार खोलने के लिए पूरा ध्यान देती हूँ, ताकि अगर तुम्हारें अंदर एकाग्रता की जरा भी गति…

% दिन पहले

चैत्य को जानना

चैत्य को जानने के लिये तुम्हें अपने प्राण की कामनाओं को जीत लेना और मन को नीरव कर देना चाहिये…

% दिन पहले

ग्रहनशीलता

ग्रहणशील होने का अर्थ है, देने की प्रबल इच्छा का होना और तुम्हारें पास जो कुछ है, तुम जो कुछ…

% दिन पहले

अहंकार पर विजय पाओ

(एक शिष्य को श्रीमां का पत्र) मानव जीवन में सभी कठिनाइयों, सभी विसंगतियों, सभी नैतिक कष्टों का कारण है हर…

% दिन पहले

नियंत्रण का महत्व

नियंत्रण के बिना कोई समुचित काम संभव नहीं है । नियंत्रण के बिना समुचित जीवन संभव नहीं है । और…

% दिन पहले

श्री अरविन्द और श्री माँ के बीच भेद

​जब तुम अपने हृदय और विचार में मेरे ओर श्रीअरविन्द के बीच कोई भेद न करोगे, जब अनिवार्य रूप से…

% दिन पहले

सामंजस्य

विभिन्न मूल्य रखने वाले लोग एक साथ, सामंजस्य में कैसे रह सकते और काम कर सकते है ? इसका समाधान…

% दिन पहले

श्रीअरविंद का कार्य

श्रीअरविंद परम पुरुष के यहाँ से धरती पर एक नयी जाति और एक नए जगत - 'अतिमानसिक '-की घोषणा करने…

% दिन पहले

मैं और मेरा पंथ

​मैं किसी राष्ट्र की, किसी सभ्यता की, किसी समाज की, किसी जाति की नहीं हूं, मैं भगवान् की हूं ।…

% दिन पहले

कम बोलो

जितना कम हो सके उतना कम बोलो। जितना अधिक हो सके उतना अधिक काम करो । संदर्भ : माताजी के…

% दिन पहले