. . . फिर भी कितने धीरज की जरूरत है ! प्रगति की अवस्थाएँ कितनी अदृश्य-सी हैं ! …
ओह ! मैं तुझे अपने हृदय की गहराइयों से कैसे पुकारती हूँ, हे सत्य ज्योति, परम-प्रेम, दिव्य स्वामी, जो हमारे प्रकाश और हमारे जीवन का उत्स, हमारा पथ-प्रदर्शक और हमारा रक्षक, हमारी आत्मा की आत्मा, हमारे प्राण का प्राण, हमारी सत्ता का हेतु, सर्वोच्च ज्ञान, अविकारी शांति है !
संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान
भगवान मुझसे क्या चाहते हैं ? वे चाहते हैं कि पहले तुम अपने-आपको पा लो,…
सूर्यालोकित पथ का ऐसे लोग ही अनुसरण कर सकते हैं जिनमें समर्पण की साधना करने…
एक चीज़ के बारे में तुम निश्चित हो सकते हो - तुम्हारा भविष्य तुम्हारें ही…
सभी खिन्नता और विषाद को विरोधी शक्तियाँ ही पैदा करती हैं, उन्हें तुम्हारें ऊपर उदासी…