ध्यान के द्वारा प्राप्त किया गया अचंचल मन सचमुच बहुत कम समय के लिए रहता है, क्योंकि जैसे ही तुम ध्यान से बाहर निकलते हो उसके साथ-ही-साथ तुम मन की अचंचलता से भी बाहर निकल आते हो। प्राण, शरीर और मन में सच्ची, स्थायी अचंचलता ‘भगवान्’ के प्रति पूर्ण निवेदन से आती है; क्योंकि जब तुम किसी भी चीज को, अपने-आपको भी अपना न कह सको, जब सब कुछ, तुम्हारे शरीर के साथ-साथ तुम्हारी संवेदनाएं, अनुभव और विचार भगवान् के हो जाते हैं, तो भगवान् सभी चीजों का पूरा-पूरा उत्तरदायित्व ले लेते हैं और तुम्हें किसी बात की चिन्ता नहीं करनी पड़ती।
सन्दर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
यदि तुम घोर परिश्रम न करो तो तुम्हें ऊर्जा नहीं मिलती, क्योंकि उस स्थिति में…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
उनके लिये कुछ भी मुश्किल नहीं है जो भगवान को सच्चाई के साथ पुकारते हैं…
मधुर माँ , जब कोई नया आदमी आकर पूछें कि श्रीअरविंदआश्रम क्या हैं, तो हम…