उसके विवेक कीसाथिन एक संघर्ष-रत अविद्या है: अपने कर्मों का परिणाम देखने की वह प्रतीक्षा करता है, अपने विचारों की…
सृष्टि का स्वामी हमारे अन्तर में छिपा बसता है और अपनी आत्म चित्शक्ति के साथ लुका-छिपी खेलता है; रहस्यमय परमेश्वर…
तीव्र झंझावात और तूफ़ानी मौसम के थपेड़ों के बीच होकर मैं चल पड़ा पहाड़ी की छोटी और बीहड़ भूमि पर…
समस्त अधो जगत में व्याप्त है तू, जो , फिर भी बैठा ऊपर दूर परे ; कर्मी, शासक, ज्ञानी, सबका…
प्रश्न -कार्य के समय व्यर्थ के विचार घुस आतें है और बाहरी और भीतरी सत्ताओं के संपर्क में बाधा डालते…
" जब मैं 'अज्ञान' में सोया पड़ा था, तो मैं एक ऐसे ध्यान-कक्ष में पहुंचा जो साधू-संतों से भरा था…