शारीरिक कठिनाइयां हमेशा समता सिखाने के पाठ के रूप में आती हैं और यह प्रकट करती हैं कि हमारे अन्दर इतने पर्याप्त रूप में क्या शुभ और प्रकाशमय है जिस पर इन चीजों का कोई असर न पड़े। हम समता में ही उपचार पाते हैं ।
एक महत्वपूर्ण बात यह है कि समता का अर्थ उदासी न होना चाहिये।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…