पथ पर मनुष्य जो पहली चीज़ सीखता है वह यह है कि देने का आनन्द पाने के आनन्द से कही अधिक बढ़ कर है  ।

तब तुम धीरे-धीरे सीखते हो कि अपने-आपको भूल जाना निर्विकार शांति का स्तोत्र है । बाद में इस आत्म-विस्मृति में तुम भगवान को पाते हो और वे ही सदा बढ़ते रहने वाले आनन्द का स्तोत्र हैं ।

संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)

शेयर कीजिये

नए आलेख

बीमारी में अस्वस्थ रुचि

अगर तुम बीमार पड़ते हो तो तुम्हारी बीमारी की इतनी व्याकुलता और भय से देख-रेख…

% दिन पहले

भूलों को ठीक करने का एकमात्र उपाय

भूतकाल के बारे में सोचते रहना बिलकुल गलत है । सच्ची विधि तो यह याद…

% दिन पहले

श्रीअरविंद और श्री माँ की और खुला होना

क्या यह हो सकता है कि एक व्यक्ति जो श्रीअरविंद की ओर खुला है, माँ…

% दिन पहले

पूर्णता और कर्म

अगर लोगों को पूर्ण होने की वजह से काम को बंद कर देना पड़े तो…

% दिन पहले

दूसरों की राय

जो दोषहीन है वह दूसरों की राय की परवाह नहीं करता । संदर्भ : माताजी…

% दिन पहले

औरों की राय

तुम औरों की मनोभावनाओं और सनको का अपने ऊपर असर नहीं पड़ने देते  - यह…

% दिन पहले