जीवन में शांति और आनंद के लिए आवश्यक शर्त है, पूरी सच्चाई के साथ वही चाहना जो भगवान चाहते हैं। लगभग सभी मानव दुर्गतियां इस तथ्य से आती हैं कि हमें प्रायः हमेशा यह विश्वास होता है कि हम भगवान की अपेक्षा ज्यादा अच्छी तरह जानते हैं कि हमें क्या चाहिये और जीवन को हमें क्या देना चाहिये। अधिकतर मनुष्य चाहते हैं कि दूसरे मनुष्यों को उनकी प्रत्यक्षाओं की पुष्टि करनी चाहिये – इसलिए वे कष्ट भोगते और दु:खी रहते हैं ।
कामनाओं के लोप से जो शांति और निश्चल आनंद प्राप्त होता है वह तभी आता है जब हम अपने-आपको पूरी सच्चाई के साथ भागवत इच्छा के अर्पण कर देते हैं ।
चैत्य सत्ता इस बात को निश्चय के साथ जानती हैं; इसलिए अपने चैत्य के साथ एक होकर हम उसे जान सकते हैं । लेकिन पहली शर्त है, अपनी कामनाओं के आधीन न होना और उन्हें अपनी सत्ता का सत्य न मान बैठना ।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)
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