उसके विवेक कीसाथिन एक संघर्ष-रत अविद्या है:
अपने कर्मों का परिणाम देखने की वह प्रतीक्षा करता है,
अपने विचारों की सत्यता को परखने की वह प्रतीक्षा करता है,
किन्तु क्या पायेगा या कब प्राप्त करेगा वह नहीं जानता;
अन्त तक वह जीवित रह पायेगा या नहीं, वह नहीं जानता,
या अन्त में प्राक्-ऐतिहासिक विशाल जन्तुओं समान नष्ट हो जायेगा
और इस पृथ्वी पर जहां का वह राजा था लोप हो जायेगा।

संदर्भ : “सावित्री” 

शेयर कीजिये

नए आलेख

भगवान के दो रूप

... हमारे कहने का यह अभिप्राय है कि संग्राम और विनाश ही जीवन के अथ…

% दिन पहले

भगवान की बातें

जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…

% दिन पहले

शांति के साथ

हमारा मार्ग बहुत लम्बा है और यह अनिवार्य है कि अपने-आपसे पग-पग पर यह पूछे…

% दिन पहले

यथार्थ साधन

भौतिक जगत में, हमें जो स्थान पाना है उसके अनुसार हमारे जीवन और कार्य के…

% दिन पहले

कौन योग्य, कौन अयोग्य

‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…

% दिन पहले

सच्चा आराम

सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…

% दिन पहले