मेरे अन्दर से उस समस्त अंधकार तो निकाल दो जो मुझे अंधा बना देता है और हमेशा मेरे साथ रहो ।
मैं तुम्हारे हर विचार और हर अभीप्सा में हूँ जिसे तुम मेरी ओर मोड़ते हो। अगर तुम हमेशा मेरी चेतना में उपस्थित न होते तो तुम कभी मेरे बारे में सोच ही न पाते। इसलिए तुम मेरी उपस्थिती के बारे में निश्चित हो सकते हो। मैं अपने आशीर्वाद जोड़ती हूँ ।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)
तुम्हारा अवलोकन बहुत कच्चा है। ''अन्दर से'' आने वाले सुझावों और आवाजों के लिए कोई…
क्षण- भर के लिए भी यह विश्वास करने में न हिचकिचाओ कि श्रीअरविन्द नें परिवर्तन…
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…