बदलो…
१. घृणा को सामञ्जस्य में
२. ईर्ष्या को उदारता में
३. अज्ञान को ज्ञान में
४. अन्धकार को प्रकाश में
५. मिथ्यात्व को सत्य में
६. धूर्तता को भलाई में
७. युद्ध को शान्ति में
८. भय को अभय में
९. अनिश्चितता को निश्चिति में
१०. सन्देह को श्रद्धा में
११. अव्यवस्था को व्यवस्था में
१२. पराजय को जय में
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-३)
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…