श्रेणियाँ श्री माँ के वचन

ओह, बैचेन क्यों हुआ जाये

ओह, बेचैन क्यों हुआ जाये और यह चाह क्यों की जाये कि हमारे लिए वस्तुएँ अमुक दिशा ही अपनाएँ, कोई और नहीं ! यह निश्चय ही क्यों किया जाये कि परिस्थितियों का अमुक संगठन ही सवोत्तम सम्भावनाओं की अभिव्यक्ति होगा और तब एक कटु संघर्ष में कूद पड़ना ताकि ये सम्भावनाएँ चरितार्थ हो। अपनी सारी ऊर्जा को आन्तरिक विश्वास की शान्ति में केवल यही चाहने में क्यों न लगाया जाये कि हर जगह, हमेशा सभी कठिनाइयों पर, समस्त अंधकार और समस्त अहंकार पर तेरे विधान की विजय हो ! यह वृत्ति अपनाना सीखते ही क्षितिज कितना विस्तृत हो जाता है; कैसे सारी चिंताएँ गायब हो जाती है और अपना स्थान सतत प्रकाश, नि:स्वार्थता की सर्वशक्तिमत्ता को दे देती हैं। हे प्रभों, जो तू चाहता है वही चाहने का अर्थ है, सदा तेरे सायुज्य में रहना, सभी आकस्मिकताओं से मुक्त होना, सभी संकीर्णताओं से बच निकलना, अपने फेफड़ों को शुद्ध और स्वास्थ्यकर हवा से भर लेना, व्यर्थ की समस्त क्लांति से पिण्ड छुड़ाना, सभी बोझिल भारों से हल्का होना ताकि हम पाने-योग्य एकमात्र लक्ष्य की और तेजी से दौड़ सकें : यह है तेरे दिव्य विधान की जय।

संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान 

शेयर कीजिये

नए आलेख

भगवान के दो रूप

... हमारे कहने का यह अभिप्राय है कि संग्राम और विनाश ही जीवन के अथ…

% दिन पहले

भगवान की बातें

जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…

% दिन पहले

शांति के साथ

हमारा मार्ग बहुत लम्बा है और यह अनिवार्य है कि अपने-आपसे पग-पग पर यह पूछे…

% दिन पहले

यथार्थ साधन

भौतिक जगत में, हमें जो स्थान पाना है उसके अनुसार हमारे जीवन और कार्य के…

% दिन पहले

कौन योग्य, कौन अयोग्य

‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…

% दिन पहले

सच्चा आराम

सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…

% दिन पहले