अहंकार हमेशा यही सोचता रहता है कि वह क्या चाहता है और उसे क्या नहीं मिला – यही उसकी सतत तल्लीनता होती है ।
आत्मा इस बात से अभिज्ञ होती है कि उसे क्या मिला है और उसके लिये चिर कृतज्ञ होती है ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
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