श्रीअरविंद के वचन

भगवान के दो रूप

... हमारे कहने का यह अभिप्राय है कि संग्राम और विनाश ही जीवन के अथ और इति नहीं हैं, कि…

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अंतर में माताजी की उपस्थिति

उसे अपने भीतर जाना होगा और अंतर में भगवती माता की और हृदय के पीछे चैत्य पुरुष की उपस्थिति को…

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ध्यान के चरण

ध्यान करने की चेष्टा करने पर व्यक्तिके सामने प्रारंभ में, सर्व प्रथम बाधा निद्रा- के रूपमें आती है। उस बाधा…

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ईश्वर : श्रीअरविन्द की कविता

  तू जो कि सर्वव्याप्त है समस्त निचले लोकों में , फिर भी है विराजमान बहुत ऊपर , उन सबका…

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किसका भय ?

तुम्हारी निष्ठा और समर्पण सत्यमय और संपूर्ण होने चाहियें। जब तुम अपना अर्पण करते हो तो अपने को दे डालो…

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क्या कठोरता सही है ?

किसी व्यक्ति को निरुत्साहित करना अनुचित है, परन्तु मिथ्या उत्साह देना अथवा किसी अनुचित वस्तुके लिये उत्साहित करना ठीक नहीं…

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विरोधी शक्तियों का प्रतिरोध

आक्रमण और वैश्व शक्तियों की क्रिया के सम्बन्धमें-जब प्रगति तेजीसे हो रही होती है, और सुनिश्चित होनेकी दिशा में बढ़…

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कृष्ण

अंततः मुझे मिला इस मधुर और भीषण जगत में आत्मा के जन्म का उद्देश्य, मैंने अनुभव किया पृथ्वी का क्षुधित…

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माताजी की सतत उपस्थिति का तात्पर्य

आपने कहा है, “हमेशा इस प्रकार व्यवहार करो मानों श्रीमां तुम्हारी और ताक रही हों; क्योंकि वह, सचमुच, हमेशा उपस्थित…

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बस तुम्हारा एक ही काम

बस तुम्हारा काम है अभीप्सा करना, अपने-आपको श्रीमां की ओर खुला रखना, जो भी चीजें उनकी इच्छा के विरुद्ध हैं…

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