एकदम आरम्भ से ही आत्मसमर्पण का पूर्ण होना सम्भव नहीं हैं न?
साधारण रूप में नहीं। इसमें थोड़ा-बहुत समय लगता है। परंतु कभी-कभी एकाएक परिवर्तन हो जाता है। इन सब चीज़ों को ब्योरेवार समझाने में बहुत अधिक समय लगेगा। तुम शायद ये जानते हो कि साधना की सभी परम्पराओं में यह कहा जाता था कि मनुष्य का स्वभाव बदलने के लिए ३५ वर्षों की आवश्यकता होती हैं! अतएव, एक क्षण में ही इसके हो जाने की आशा तुम्हें नहीं करनी चाहिये।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५०-१९५१
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…