हे सर्वसत्तासंपन्न सामर्थ्य, हे विजयी शक्ति, शुद्धि, सौन्दर्य, परम प्रेम, वर दे कि अपनी पूर्णता में यह सत्ता , अपनी समग्रता में यह शरीर गम्भीरता से ‘तेरे’ निकट खींचता जाये और सम्पूर्ण और विनम्र भाव से अभिव्यक्ति के इस साधन को ‘तेरे’ अर्पित कर दे जो साधन इस सिद्धि के लिए पूरी तरह तैयार तो नहीं हैं पर जिसे तेरी इच्छा पर पूरी तरह छोड़ दिया गया है … ।
इस शांत और प्रबल निश्चिति के साथ कि एक दिन ‘तू’ प्रत्याशित चमत्कार को कार्यान्वित करेगा और अपने परम वैभव को अपनी संपूर्णता में प्रकट करेगा, हम तेरी ओर गहरे उल्लास के साथ मुड़ते और मौन भाव से तुझे अनुनय करते है … ।
विशालता, अनन्तता, विस्मय … । केवल तू ही है और तू सभी चीजों में भव्यता से चमकता है। तेरी परिपूर्ति का समय निकट है । सारी प्रकृति गम्भीर एकाग्रता में अंतर्मुख है ।
‘तू’ उसकी तीव्र पुकार को उत्तर देता है ।
संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…