“श्रद्धा के साथ जो कोई भक्त मेरे जिस किसी रूप को पूजन चाहता है, मैं उसकी वही श्रद्धा उसमें अचल-अटल बना देता हूँ ।” वह अपने मत और उपासना की उस श्रद्धा के बल पर अपनी इच्छा पूर्ण करा लेता और उस आध्यात्मिक उपलब्धि को प्राप्त कर लेता है जिसका वह उस समय अधिकारी होता है।
संदर्भ : गीता प्रबंध
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…