हमारी बाहरी घटनाओं के कारण-बीज हमारे अन्तर में हैं,
और इस उद्देश्यहीन दैवनियति का भी है जो विधि के संयोगसम दिखती है,
हमारी बौद्धिकता से परे परिणामों का यह अम्बार,
उन सत्यों का मूक रेखांकन है जो अगोचर कार्य करते हैं:
परम-अज्ञेय के ये विधान द़ृश्य-सृष्टि की रचना करते हैं।
संदर्भ : “सावित्री”
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…