हमारा क्षेत्र बहिर्मुखी तात्कालिकता का है,
और मृत भूतकाल हमारी पृष्ठभूमि तथा आधार है;
मन अन्तरात्मा को बन्दी बना रखता है, हम अपने कर्मों के दास हैं;
प्रज्ञा के सूर्य तक पहुंचने को हम अपनी द़ृष्टि को मुक्त नहीं कर पाते हैं।

संदर्भ : “सावित्री” 

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