हमारा क्षेत्र बहिर्मुखी तात्कालिकता का है,
और मृत भूतकाल हमारी पृष्ठभूमि तथा आधार है;
मन अन्तरात्मा को बन्दी बना रखता है, हम अपने कर्मों के दास हैं;
प्रज्ञा के सूर्य तक पहुंचने को हम अपनी द़ृष्टि को मुक्त नहीं कर पाते हैं।
संदर्भ : “सावित्री”
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…