. . . (हे प्रभो!) तू यह निश्चय कब करेगा कि इस सारे प्रतिरोध के ग़ायब होने का समय आ गया है!
धरती पर तूफ़ान की तरह विकराल शक्तियाँ झपट पड़ी हैं, ऐसी शक्तियाँ जो अंधेरी हिंसात्मक, शक्तिशाली और अंधी हैं। हे प्रभो, हमें शक्ति दे कि हम उन्हें प्रदीप्त कर सकें । तेरी भव्यता को उनके अंदर हर जगह फूट पड़ना और उनकी क्रियाओं को रूपांतरित करना चाहिये : उनकी विनाशकारी यात्रा अपने पीछे दिव्य बुआई छोड़ जाये। . . .
ओ मेरे दिव्य स्वामी, मेरी भेंट को अस्वीकार न कर। मुझे इस योग्य बना कि मैं दान की बहुलता और अभिव्यक्ति की परिपूर्णता में पूरी तरह तेरी हो जाऊँ।
संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…