आपने कहा है, “हमेशा इस प्रकार व्यवहार करो मानों श्रीमां तुम्हारी और ताक रही हों; क्योंकि वह, सचमुच, हमेशा उपस्थित रहती हैं।” इसका अर्थ यह है कि श्रीमाताजी हमारे सभी मामूली विचारों को सदा ही जानती हैं अथवा जब वह एकाग्र होती है केवल तभी जानती हैं।
यह कहा गया है कि माताजी हमेशा उपस्थित रहती हैं और तुम्हारी ओर ताक रही है. इसका मतलब यह नहीं कि अपने भौतिक मन में वे हमेशा तम्हारी ही बात सोचती रहती है और तुम्हारे विचारों को देखती रहती हैं। इसकी कोई आवश्यकता नहीं, क्योंकि वे सर्वत्र हैं और अपने विश्वव्यापी ज्ञान के द्वारा सर्वत्र कार्य करती हैं।
सन्दर्भ : माताजी के विषय में
"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…
मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…
...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…