आपने कहा है, “हमेशा इस प्रकार व्यवहार करो मानों श्रीमां तुम्हारी और ताक रही हों; क्योंकि वह, सचमुच, हमेशा उपस्थित रहती हैं।” इसका अर्थ यह है कि श्रीमाताजी हमारे सभी मामूली विचारों को सदा ही जानती हैं अथवा जब वह एकाग्र होती है केवल तभी जानती हैं।
यह कहा गया है कि माताजी हमेशा उपस्थित रहती हैं और तुम्हारी ओर ताक रही है. इसका मतलब यह नहीं कि अपने भौतिक मन में वे हमेशा तम्हारी ही बात सोचती रहती है और तुम्हारे विचारों को देखती रहती हैं। इसकी कोई आवश्यकता नहीं, क्योंकि वे सर्वत्र हैं और अपने विश्वव्यापी ज्ञान के द्वारा सर्वत्र कार्य करती हैं।
सन्दर्भ : माताजी के विषय में
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…