जो अपने चैत्य पुरुष के बारे में पूरी तरह सचेतन हैं उनके लिये अपने-आपको धोखा देना संभव नहीं है क्योंकि, अगर वे अपनी समस्या चैत्य के आगे रखें तो वहां से भगवान् का उत्तर पा सकते है । लेकिन उनके लिये भी जिनका अपने चैत्य पुरुष के साथ संबंध है उत्तर का स्वरूप वैसा नहीं होता जैसा मन के उत्तर का होता है । मन का उत्तर यथार्थ, सुनिश्चित, निरपेक्ष और अधिकार जमाने वाला होता है यह अधिकार जमाने की अपेक्षा मनोवृत्ति अधिक होती है एक ऐसी चीज जिसकी मनमें विभिन्न व्याख्याएं हो सकती है ।
संदर्भ : पथपर
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