जो अपने चैत्य पुरुष के बारे में पूरी तरह सचेतन हैं उनके लिये अपने-आपको धोखा देना संभव नहीं है क्योंकि, अगर वे अपनी समस्या चैत्य के आगे रखें तो वहां से भगवान् का उत्तर पा सकते है । लेकिन उनके लिये भी जिनका अपने चैत्य पुरुष के साथ संबंध है उत्तर का स्वरूप वैसा नहीं होता जैसा मन के उत्तर का होता है । मन का उत्तर यथार्थ, सुनिश्चित, निरपेक्ष और अधिकार जमाने वाला होता है यह अधिकार जमाने की अपेक्षा मनोवृत्ति अधिक होती है एक ऐसी चीज जिसकी मनमें विभिन्न व्याख्याएं हो सकती है ।
संदर्भ : पथपर
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…