जो अपने चैत्य पुरुष के बारे में पूरी तरह सचेतन हैं उनके लिये अपने-आपको धोखा देना संभव नहीं है क्योंकि, अगर वे अपनी समस्या चैत्य के आगे रखें तो वहां से भगवान् का उत्तर पा सकते है । लेकिन उनके लिये भी जिनका अपने चैत्य पुरुष के साथ संबंध है उत्तर का स्वरूप वैसा नहीं होता जैसा मन के उत्तर का होता है । मन का उत्तर यथार्थ, सुनिश्चित, निरपेक्ष और अधिकार जमाने वाला होता है यह अधिकार जमाने की अपेक्षा मनोवृत्ति अधिक होती है एक ऐसी चीज जिसकी मनमें विभिन्न व्याख्याएं हो सकती है ।
संदर्भ : पथपर
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…