प्यारी माताजी,
मुझे सर्दी हो गयी है, क्या मैं रोज़ की तरह स्नान करूँ ?
जो तुम्हें पसंद हो करो, इसका बहुत महत्व नहीं है; लेकिन जो चीज़ महत्वपूर्ण है वह है भय को उठा फेंकना । भय ही तुम्हें बीमार करता है और भय के कारण ही रोगमुक्त होना इतना कठिन होता है । समस्त भय को जीतना चाहिये और उसके स्थान पर भागवत कृपा पर पूर्ण विश्वास को लाना चाहिये।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…