हर बार जब तुम बेचैन होओ तो तुम्हें दोहराना चाहिये – बाह्य ध्वनि के बिना अपने भीतर बोलते हुए और साथ-साथ मेरा स्मरण करते हुए :
“शांति, शांति, मेरे हृदय।”
यह नियमित रूप से करो और इसके परिणाम से तुम प्रसन्न होगे।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)
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