बस तुम्हारा काम है अभीप्सा करना, अपने-आपको श्रीमां की ओर खुला रखना, जो भी चीजें उनकी इच्छा के विरुद्ध हैं उन सबका त्याग करना तथा अपने अंदर उन्हें कार्य करने देना–साथ ही अपने सभी कर्मों को उनके लिये ही करना और इस विश्वास के साथ करना कि केवल उनकी शक्ति के द्वारा ही तुम उन्हें कर सकते हो। इस तरह खुले रहो तो फिर यथासमय ज्ञान और उपलब्धि तुम्हें प्राप्त हो जायेंगी।
सन्दर्भ : माताजी के विषय में
भगवान को अभिव्यक्त करने वाली किसी भी चीज को मान्यता देने में लोग इतने अनिच्छुक…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिसमें…
मनुष्य-जीवन के अधिकांश भाग की कृत्रिमता ही उसकी अनेक बुद्धमूल व्याधियों का कारण है, वह…
श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…