बच्चों को डांट नहीं


श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ कक्षा लेते हुए

बच्चे को कभी डाँटना-फटकारना नहीं चाहिये। माता-पिताओं की बुराई करने के लिए मुझे दोष दिया जाता है ! परन्तु मैंने उन्हें यह करते हुए देखा है, और हाँ, मैं जानती हूँ कि नब्बे प्रतिशत माता-पिता उस बच्चे को डाँटते-फटकारते हैं जो अपने-आप कोई भूल स्वीकार करने के लिए आता है; वे बच्चे की बात धैर्यपूर्वक सुनने के बजाय और उसे यह समझाने के बजाय कि उसका दोष क्या है और उसे कैसे कार्य करना चाहिये, कहते हैं : “तुम बड़े दुष्ट हो, चले जाओ, मुझे अभी फुरसत नहीं।” और बच्चा, जो कि अच्छी भावना के साथ आया था, बिलकुल आहत होकर लौट जाता है और यह भावना लेकर जाता है कि “भला मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया गया?” तब बच्चा यह देखता है कि मेरे माता-पिता पूर्ण नहीं हैं-और यह बात स्पष्ट ही आज उनके विषय में सही है-वह देखता है कि वे ग़लत हैं और वह अपने-आपसे कहता है : “वे मुझे क्यों डाँटते हैं, वे भी तो मेरे जैसे ही हैं!”

संदर्भ : प्रश्न और उत्तर (१९५०-१९५१)


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