चीजों का तरीका


श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ

… अगर हर एक जो कुछ जरूरी है वह करे और भरसक अधिक-से-अधिक करे तो एक ऐसी स्थिति तक पहुंच जाना सम्भव है जहां से हमेशा ऊपर की ओर ही गति होगी, जहां नये सिरे से शुरू करने के लिए कुछ नष्ट करने की जरूरत न होगी। यह अनिवार्य नहीं है परन्तु अभी तक हमेशा ऐसा ही हुआ है, …

स्थिति ऐसी है कि प्रकृति ने जो कुछ किया है उसका सहारा लेने के लिए हम बाधित है, क्योंकि अभी तक वही काम करती आयी है। लेकिन साथ ही हम उसकी कार्य-प्रणालियों को पसन्द भी नहीं करते। इससे एक छोटी-सी आन्तरिक अनबन-सी पैदा हो जाती है (शायद इसे पारिवारिक अनबन कह सकते हैं!); लेकिन इससे चीजें कुछ कठिन बन जाती हैं, क्योंकि वह नहीं चाहती कि उसके होने के तरीके में बाधा डाली जाये। फिर भी, यदि व्यक्ति उसी तरह करता जाये जैसा वह चाहती है तो हमेशा वही कहानी चलती रहेगी। हमेशा इस तरह विलुप्त होने और नये सिरे से शुरू करने की जरूरत रहेगी, क्योंकि यह उसका खेल है। इसलिए हमें उसे नष्ट करने से रोकने में सक्षम होना चाहिये। लेकिन अगर अकस्मात्
एक अच्छा उपाय निकल आये जिससे प्रकृति में दिलचस्पी पैदा की जा के और उसका सहयोग लिया जा सके तो उसके सहयोग के साथ सफल
होना सम्भव होगा।

वास्तव में, जरूरी यह है कि उसे यह समझाया जाये कि चीजें उसके तरीके से भिन्न, अलग तरीके से भी की जा सकती हैं।

संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५०-१९५१


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