हे प्रभो, प्रेम के मधुर स्वामी, तू हमें अन्धकार में से बाहर निकालता है ताकि हम चेतना की ओर जागें, हमें दुःख-दर्द से मुक्त करता है ताकि हम तेरी शाश्वत शान्ति के साथ नाता जोड़ सकें। हर सवेरे मेरी अभीप्सा तीव्रता के साथ तेरी ओर उठती है और मैं अनुनय-विनय करती हूं कि अब मेरी सत्ता सम्पूर्ण रूप से तेरे ज्ञान के प्रति जाग जाये, केवल तेरे द्वारा, तेरे अन्दर और तेरे लिए ही जिये। मैं विनय करती हूं कि मैं तेरे साथ अधिकाधिक एकात्म हो जाऊं, अब से मैं वाणी और कर्म में अभिव्यक्त तेरे सिवा और कुछ न रहूं। मैं विनय करती हूं कि वे सब जो हमारे निकट आते हैं, वे सब जिनका हमारे साथ सम्पर्क है, तेरी दिव्य उपस्थिति और दिव्य विधान के पूर्ण ज्ञान के प्रति जागें और अपने-आपको उसके द्वारा निश्चित रूप से रूपान्तरित होने दें। मैं विनय करती हैं कि पृथ्वी पर सभी मनुष्य अपने कठोर दुःखों के बावजूद अपने अन्दर तेरे प्रकाश और तेरे प्रेम की परम सान्त्वना और तेरी शान्ति की अद्भुत उषा को उतरता अनुभव करें। मैं अनुनय करती हूं कि प्रत्येक पदार्थ तेरी परमोच्च शक्तियों से अधिकाधिक भिद कर तेरे विरोध में खड़े अन्धे अज्ञान के प्रतिरोध को कम-से-कम प्रकट करे और अंधेरे पर विजय पाते हुए तू निश्चित रूप से पूर्णतया इस संघर्ष और परिताप के जगत को सामञ्जस्य और शान्ति के जगत् में बदल दे… ताकि तेरा विधान चरितार्थ हो।
सन्दर्भ : प्रार्थना और ध्यान
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