जो होना चाहिये उसके आगे अब तक जो कुछ सोचा या प्राप्त किया गया है वह सामान्य, अति तुच्छ और अपर्याप्त है। अतीत की पूर्णताओं में अब कोई शक्ति नहीं है। नयी शक्तियों को रूपान्तरित करने और उन्हें तेरी दिव्य इच्छा के अधीन करने के लिए एक नये सामर्थ्य की जरूरत है।
हमेशा तेरा यही उत्तर होता है, “मांग और यह हो जायेगा।” और अब, हे प्रभो, तुझे इस सत्ता के अन्दर एक सतत अभीप्सा, अविच्छिन्न, तीव्र और उत्कट अभीप्सा पैदा करनी होगी जो निर्विकार और प्रशान्त हो। नीरवता और शान्ति तो हैं, साथ ही तीव्रता का अध्यवसाय भी तो होना चाहिये।
ओह, तेरा हृदय प्रसन्नता की जयजयकार कर रहा है मानों जो तू चाहता है वह अपनी परिपूर्णता के पथ पर है…। इन सब तत्त्वों को नष्ट कर दे ताकि उनकी भस्म से ऐसे तत्त्व निकल सकें जो नयी अभिव्यक्ति के अनुकूल हों।
ओह, तेरी ज्योतिर्मयी शान्ति की विशालता!
ओह, तेरे सर्वशक्तिसम्पन्न प्रेम की सर्वशक्तिमत्ता!
और हम जो कुछ कल्पना कर सकते हैं उसके परे है हम जिसे आते हुए अनुभव करते हैं उसकी अकथनीय भव्यता। हमें ‘विचार’ दे, हमें ‘शब्द’ दे, हमें ‘शक्ति’ दे।
हे नवजात अज्ञात, जगत् के रंगस्थल में प्रवेश कर!
संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…