प्रेम के हे दिव्य स्वामी, हर सत्ता में तेरी उपस्थिति के कारण हर मनुष्य, यहां तक कि अत्यन्त क्रूर मनुष्य भी दया पा सकता है और अत्यन्त दुष्ट भी मान-सम्मान, प्रायः अपने बावजूद, मान और न्याय पाता है। सभी परिपाटियों और पक्षपातों के परे, एक विशेष, दिव्य और शुद्ध प्रकाश द्वारा तू उस सबको प्रकाशित करता है जो हम हैं और जो कुछ हम करते हैं और हमें स्पष्ट रूप से हम जो वास्तव में हैं और जो हम हो सकते हैं उनके बीच का भेद दिखलाता है। तू अशुभ के बाहुल्य, अन्धकार
और दुर्भावना के विरुद्ध अलंघ्य बाधा है। तू प्रत्येक हृदय में सम्भाव्यऔर भावी पूर्णताओं की जीवित आशा है। मेरी आराधना का समस्त उत्साह तेरी सेवा में है।…
संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान
श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…
... सामान्य व्यक्ति में ऐसी बहुत-से चीज़ें रहती हैं, जिनके बारे में वह सचेतन नहीं…
भगवान मुझसे क्या चाहते हैं ? वे चाहते हैं कि पहले तुम अपने-आपको पा लो,…
सूर्यालोकित पथ का ऐसे लोग ही अनुसरण कर सकते हैं जिनमें समर्पण की साधना करने…