प्रेम के हे दिव्य स्वामी, हर सत्ता में तेरी उपस्थिति के कारण हर मनुष्य, यहां तक कि अत्यन्त क्रूर मनुष्य भी दया पा सकता है और अत्यन्त दुष्ट भी मान-सम्मान, प्रायः अपने बावजूद, मान और न्याय पाता है। सभी परिपाटियों और पक्षपातों के परे, एक विशेष, दिव्य और शुद्ध प्रकाश द्वारा तू उस सबको प्रकाशित करता है जो हम हैं और जो कुछ हम करते हैं और हमें स्पष्ट रूप से हम जो वास्तव में हैं और जो हम हो सकते हैं उनके बीच का भेद दिखलाता है। तू अशुभ के बाहुल्य, अन्धकार
और दुर्भावना के विरुद्ध अलंघ्य बाधा है। तू प्रत्येक हृदय में सम्भाव्यऔर भावी पूर्णताओं की जीवित आशा है। मेरी आराधना का समस्त उत्साह तेरी सेवा में है।…
संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…