तुझे प्रणाम है हे भगवान् ! हे संसार के स्वामी ! हमें ऐसी शांति दे कि हम कर्म में आसक्त हुए बिना उसे पूरा कर सकें। व्यष्टि-भाव के मोह में निवास किये बिना लीला के अपने व्यक्तिगत सामर्थ्यों  को विकसित कर सकें। हमारी सत्य-दृष्टि को सबल बना; हमारे एकत्व के अनुभव को सुदृढ़ बना; समस्त अज्ञान से, समस्त अंधकार से हमें मुक्त कर।

हम यंत्र की परिपूर्णता की मांग नहीं करते, हम जानते हैं कि इस आपेक्षिक जगत में  सब परिपूर्णताएं भी आपेक्षिक हैं। इस यंत्र को, जो इस जगत में  कार्य करनेके लिये अभिप्रेत है, इस कार्य के योग्य बनने के लिये इसी जगत से संबंध रखना होगा; परंतु जो चेतना इसे संजीवित करती है उसे तेरी चेतना के साथ एक होना होगा, उसे वह विश्वगत और शाश्वत चेतना बन जाना होगा जो नाना प्रकारके असंख्य शरीरोंको अनुप्राणित करती है।

हे नाथ, ऐसा वर दे कि हम सृष्टि के साधारण रूपों को अतिक्रम कर ऊपर उठ जायं जिससे कि तू अपनी नयी अभिव्यक्ति के लिये आवश्यक उपकरण प्राप्त कर सके।

हमें लक्ष्य न भूलने दे; ऐसी कृपा कर कि हम सर्वदा तेरी शक्ति के साथ संयुक्त रहें उस शक्ति के साथ जिसे पृथ्वी अभी तक नहीं जानती और जिसे प्रकट करने का कार्य तूने हमें सौंपा है।

गभीर अंतर्मुखी एकाग्रता के अंदर अभिव्यक्ति की सभी अवस्थाएं तेरी अभिव्यक्ति के हेतू आत्मसमर्पण करती हैं।

सन्दर्भ : प्रार्थना और ध्यान 

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