प्रत्येक का अपना तरीका

प्रत्येक का साधना करने और भगवान तक जाने का अपना तरीक़ा होता है और दूसरे उसे कैसे करते हैं इसमें उसे माथापच्ची नहीं करनी चाहिये; उनकी सफलता, असफलता, उनकी कठिनाइयाँ, उनके भ्रम, उनका अहंकार और दम्भ सब कुछ का श्रीमाँ के साथ वास्ता है; माँ के अन्दर अनन्त धैर्य है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि वे साधकों के दोषों को उचित ठहराती हैं या वे जो कुछ कहें उसे स्वीकार करती हैं। किसी भी कलह, प्रतिरोध या वाद-विवाद में माताजी किसी की तरफ़ नहीं होती, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि अगर वे लोग अनुचित बात कहें या करें तो उसे वे उचित ठहराती हैं। आश्रम या आध्यात्मिक जीवन कोई  ऐसा रंगमंच नहीं जहाँ कुछ की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी या यह प्रतियोगिता का कोई अखाड़ा नहीं जिसमें कुछ लोग अपने को दूसरों से श्रेष्ठतर घोषित कर दें। ये सारी चीजें साधारण मनुष्य के मनोभाव की सांसारिक खोजे हैं और इन्हें साधना के जीवन में भी लिये-लिये चलने की उनकी प्रवृत्ति होती है, लेकिन यह चीज़ों का आध्यात्मिक सत्य नहीं है।… माताजी साधकों की परस्पर आलोचनाओं पर न तो ध्यान देती हैं न ही कोई महत्त्व। केवल तभी जब साधक आध्यात्मिक स्तर से इन चीज़ों की तुच्छता देखे, यह सम्भव होता है कि वह इनका बहिष्कार कर, पथ पर सीधा कूच कर दे।

संदर्भ : माताजी के विषय में 

शेयर कीजिये

नए आलेख

आश्रम के दो वातावरण

आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिसमें…

% दिन पहले

ठोकरें क्यों ?

मनुष्य-जीवन के अधिकांश भाग की कृत्रिमता ही उसकी अनेक बुद्धमूल व्याधियों का कारण है, वह…

% दिन पहले

समुचित मनोभाव

सब कुछ माताजी पर छोड़ देना, पूर्ण रूप से उन्ही पर भरोसा रखना और उन्हें…

% दिन पहले

देवत्‍व का लक्षण

श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…

% दिन पहले

भगवान की इच्छा

तुम्हें बस शान्त-स्थिर और अपने पथ का अनुसरण करने में दृढ़ बनें रहना है और…

% दिन पहले

गुप्त अभिप्राय

... सामान्य व्यक्ति में ऐसी बहुत-से चीज़ें रहती हैं, जिनके बारे में वह सचेतन नहीं…

% दिन पहले