प्रकृति का ऐसा कोई विधान नहीं हैं जिसका अतिक्रमण न किया जा सके या जिसे बदला न जा सके, केवल हमारे अंदर यह विश्वास होना चाहिये कि भगवान ही सब पर शासन करते हैं और यदि, हम अपने सहस्त्र वर्षों के पुराने अभ्यासों के बंदीगृह से निकलना और अपने-आपको ‘उनकी’ इच्छा पर पूर्ण रूप से छोड़ना सीख सकें तो हमारा ‘उनके’ साथ सीधा संपर्क हो सकता है ।
संदर्भ : विचार और सूत्र के संदर्भ में
क्षण- भर के लिए भी यह विश्वास करने में न हिचकिचाओ कि श्रीअरविन्द नें परिवर्तन…
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…