प्रकृति का ऐसा कोई विधान नहीं हैं जिसका अतिक्रमण न किया जा सके या जिसे बदला न जा सके, केवल हमारे अंदर यह विश्वास होना चाहिये कि भगवान ही सब पर शासन करते हैं और यदि, हम अपने सहस्त्र वर्षों के पुराने अभ्यासों के बंदीगृह से निकलना और अपने-आपको ‘उनकी’ इच्छा पर पूर्ण रूप से छोड़ना सीख सकें तो हमारा ‘उनके’ साथ सीधा संपर्क हो सकता है ।
संदर्भ : विचार और सूत्र के संदर्भ में
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…