श्रेणियाँ श्री माँ के वचन

प्रकृति का विधान

प्रकृति का ऐसा कोई विधान नहीं हैं जिसका अतिक्रमण न किया जा सके या जिसे बदला न जा सके, केवल हमारे अंदर यह विश्वास होना चाहिये कि भगवान ही सब पर शासन करते हैं और यदि, हम अपने सहस्त्र वर्षों के पुराने अभ्यासों के बंदीगृह से निकलना और अपने-आपको ‘उनकी’ इच्छा पर पूर्ण रूप से छोड़ना सीख सकें तो हमारा ‘उनके’ साथ सीधा संपर्क हो सकता है ।

संदर्भ : विचार और सूत्र के संदर्भ में 

शेयर कीजिये

नए आलेख

आत्मा के प्रवेश द्वार

यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…

% दिन पहले

शारीरिक अव्यवस्था का सामना

जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…

% दिन पहले

दो तरह के वातावरण

आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…

% दिन पहले

जब मनुष्य अपने-आपको जान लेगा

.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…

% दिन पहले

दृढ़ और निरन्तर संकल्प पर्याप्त है

अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…

% दिन पहले

देशभक्ति की भावना तथा योग

देशभक्ति की भावनाएँ हमारे योग की विरोधी बिलकुल नहीं है, बल्कि अपनी मातृभूमि की शक्ति…

% दिन पहले