प्रकृति का ऐसा कोई विधान नहीं हैं जिसका अतिक्रमण न किया जा सके या जिसे बदला न जा सके, केवल हमारे अंदर यह विश्वास होना चाहिये कि भगवान ही सब पर शासन करते हैं और यदि, हम अपने सहस्त्र वर्षों के पुराने अभ्यासों के बंदीगृह से निकलना और अपने-आपको ‘उनकी’ इच्छा पर पूर्ण रूप से छोड़ना सीख सकें तो हमारा ‘उनके’ साथ सीधा संपर्क हो सकता है ।
संदर्भ : विचार और सूत्र के संदर्भ में
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…