हमारी पहली आवश्यकता श्रद्धा है; क्योंकि भगवान् में, जगत् में और सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि भागवत परम सत्ता में श्रद्धा के बिना अभीप्सा या समर्पण करने का कोई अर्थ नहीं हो सकता, क्योंकि उनके बिना अभीप्सा अथवा समर्पण में कोई शक्ति ही नहीं होगी।

अगर केन्द्रीय तथा मौलिक श्रद्धा हो तो शंकाएं कोई महत्त्व नहीं रखतीं। शंकाएं आ तो सकती हैं लेकिन केन्द्रीय सत्ता में श्रद्धा की चट्टान के आगे टिक नहीं सकतीं। हो सकता है कि कुछ समय के लिए चट्टान शंका और उदासी की काई से ढक भले जाये, लेकिन अन्त में वह अविनाशी रूप में प्रकट हो जायेगी।

संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड-१२)

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