ये दो चीज़ें एकदम अनिवार्य है : सहनशक्ति और एक ऐसी श्रद्धा जिसे कोई भी चीज डिगा न सके, संपूर्ण प्रतीत होने वाला निषेध भी नहीं, चाहे तुम्हें बहुत सहना पड़े, चाहे तुम दयनीय दशा में क्यों न होओ (मेरा मतलब है शारीरिक दृष्टि), चाहे तुम थक जाओ, फिर भी टिके रहो, चिपके रहो और टिके रहो — सहनशक्ति होनी चाहिये …।
संदर्भ : पथ पर
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिसमें…
मनुष्य-जीवन के अधिकांश भाग की कृत्रिमता ही उसकी अनेक बुद्धमूल व्याधियों का कारण है, वह…
श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…