हे प्रभु ! किस तीव्रता के साथ मेरी यह अभीप्सा तेरी ओर उठ रही है। तू अपने विधानका हमें पूरा ज्ञान दे, तेरी इच्छाका हमें अनवरत मान ताकि तेरे निश्चय हमारे निश्चय हों, जीवन केवल तेरी सेवामें अर्पित हो और तेरी प्रेरणा को यथासंभव पूर्ण रूपसे प्रकट करे।
हे स्वामी ! दूर कर सब अंधकार, सब अंधता, और ऐसी कृपा कर कि हर कोई उस स्थिर निश्चयात्मक ज्ञानका आनंद लाभ करे जो तेरे देवी प्रकाश से मिलता है।
सन्दर्भ : प्रार्थना और ध्यान
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…