गहरे और मौन निदीध्यासन या लिखित या अलिखित ध्यान की जगह हमें हर क्षण की क्रियाशीलता में तेरी सेवा करनी चाहिए और अपने-आपको तेरे साथ तदात्म करना चाहिये ।

संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान 

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