तेरी विजय निश्चित है


श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ

प्रभो, मेरे विचार की निद्रालुता को तू झाड़ फेंकेगा ताकि मैं ज्ञान पा सकू और उस अनुभव को समझ सकूँ जो तूने मेरी सत्ता को दिया है। जब मेरे अन्दर से कोई चीज तुझसे प्रश्न करती है तो तू हमेशा उत्तर देता है और जब मेरे लिए कुछ जानना जरूरी होता है तो तू मुझे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सिखा देता है।

मैं अधिकाधिक देखती हूं कि अधीरता-भरा सारा विद्रोह, सारी जल्दबाजी व्यर्थ होगी; हर चीज धीरे-धीरे इस तरह व्यवस्थित हो जाती है कि मैं तेरी उस तरह सेवा कर सकू जिस तरह मुझे करनी चाहिये। इस सेवा में मेरा क्या स्थान है? एक लम्बे समय से मैंने अपने-आपसे यह पूछना बन्द कर रखा है। इसका क्या मूल्य है? क्या यह जानना जरूरी है कि मैं केन्द्र में हूं या परिधि पर? अन्य सभी चीजों का कोई मूल्य नहीं है बशर्ते कि तेरे प्रति पूरी तरह समर्पित होकर, केवल तेरे लिए और तेरे द्वारा जीकर, तू मुझे जो काम देता है उसे में अच्छा, और अधिक अच्छा करती चलं। मैं यह और कहूंगी कि यदि संसार में तेरा काम यथासम्भव अच्छी-से-अच्छी तरह और पूर्णता के साथ कार्यान्वित हो तो क्या इसका कुछ मूल्य है कि कौन-सा व्यक्ति या कौन-सा दल उस काम को सिद्ध करता है?

हे मेरे मधुर स्वामी, मैं अपने-आपको शान्ति, निरभ्रता और समता में तेरे अर्पण करती हूं और तेरे अन्दर विलीन होती हूं, मेरा विचार अचञ्चल और शान्त है, मेरा हृदय मुस्कुराता हुआ है। मैं जानती हैं कि तेरा कार्य सिद्ध होगा, तेरी विजय निश्चित है।
हे मेरे मधुर स्वामी, सभी को अपने प्रकाश का परम वरदान प्रदान कर!

संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान 


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