हे प्रभो, इस सत्ता में कोई चीज तुझसे कहती है :
“मैं कुछ नहीं जानती,
“मैं कुछ नहीं हूं,
“मैं कुछ नहीं कर सकती,
“मैं निश्चेतना के अंधेरे में हूं।”
और कोई और चीज है जो जानती है कि वह स्वयं ‘तू’ है और इस तरह परम पूर्णता है। इसमें से क्या परिणाम निकलने वाला है? ऐसी अवस्था का अन्त कैसे आयेगा? यह जड़ता है या सच्चा धैर्य, यह मुझे
नहीं मालूम; लेकिन बिना जल्दबाजी और बिना कामना के मैं तेरे चरणों में नत हूं और प्रतीक्षा कर रही हूं।
संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…