आन्तरिक मनोवृत्ति

साधक को हमेशा यह याद रखना चाहिये कि प्रत्येक वस्तु आन्तरिक मनोवृत्ति पर निर्भर करती है; यदि उसे भागवत कृपा पर सम्पूर्ण श्रद्धा हो तो वह इस बात को अनुभव करेगा कि भगवान की कृपा हर कदम पर उसके द्वारा ठीक और सही चीज़ ही करवायेगी …

किन्तु चीज़ें ऐसे घटित हों इसके लिए तुम्हारे अंदर एक गहरी श्रद्धा होनी चाहिये जो तुम्हारी सम्पूर्ण सत्ता को ओतप्रोत कर दे और जिसका विरोध तुम्हारेअंदर की कोई क्रिया न करे। और स्वभावतः, यह कठिन है। साथ ही, तुम्हारे अपने अंदर तो श्रद्धा हो सकती है किन्तु तुम्हारे चारों ओर ऐसे अन्य लोग भी हैं जो तुम्हारे इस श्रद्धा-भाव में हिस्सा नहीं बँटाते। …  ऐसा होने पर यह बात तुम्हें अपने मन में रखनी ही होगी कि एकमात्र महत्व आन्तरिक वृत्ति और श्रद्धा का ही है। समस्त बाह्य साधनों का कोई महत्व नहीं; वे पूरी तरह से अनुपयोगी और शून्य सिद्ध हो सकते हैं; केवल ‘भागवत कृपा’ ही तुम्हारा सरंक्षण कर सकती है ।

संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र

शेयर कीजिये

नए आलेख

भगवान के दो रूप

... हमारे कहने का यह अभिप्राय है कि संग्राम और विनाश ही जीवन के अथ…

% दिन पहले

भगवान की बातें

जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…

% दिन पहले

शांति के साथ

हमारा मार्ग बहुत लम्बा है और यह अनिवार्य है कि अपने-आपसे पग-पग पर यह पूछे…

% दिन पहले

यथार्थ साधन

भौतिक जगत में, हमें जो स्थान पाना है उसके अनुसार हमारे जीवन और कार्य के…

% दिन पहले

कौन योग्य, कौन अयोग्य

‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…

% दिन पहले

सच्चा आराम

सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…

% दिन पहले