मन की संकीर्णता से प्रेम करने का क्या तात्पर्य है?
लोग संकीर्ण रहना पसन्द करते हैं; वे उनके अपने सीमित विचारों, भावनाओं, मतों, रुचियों से चिपके रहते हैं और अगर कोई यह कोशिश
करे कि वे अधिक व्यापक रूप से सोच सकें तो वे विक्षुब्ध हो उठते हैं, नाराज़ हो जाते हैं और शंका से भर जाते हैं-इसे कहते हैं मन की
संकीर्णता से प्रेम करना।
संदर्भ : योग के तत्व
... मैं सभी वस्तुओं में प्रवेश करती हूँ, प्रत्येक परमाणु के हृदय में निवास करते…
यदि तुम घोर परिश्रम न करो तो तुम्हें ऊर्जा नहीं मिलती, क्योंकि उस स्थिति में…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
उनके लिये कुछ भी मुश्किल नहीं है जो भगवान को सच्चाई के साथ पुकारते हैं…