अपनी आत्मा का अनुगमन करो, अपने मन का नहीं, अपनी आत्मा का, जो सत्य को उत्तर देती है, न कि अपने मन का, जो बाहरी प्रतितियों पर छलाँग मारता है; दिव्य शक्ति पर श्रद्धा रखो और वह तुम्हारें अन्दर भागवत तत्वों को मुक्त कर देगी और दिव्य प्रकृति की अभिव्यक्ति में सब कुछ बदल देगी।
संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड-२५)
"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…
मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…
...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…