अपनी आत्मा का अनुगमन करो, अपने मन का नहीं, अपनी आत्मा का, जो सत्य को उत्तर देती है, न कि अपने मन का, जो बाहरी प्रतितियों पर छलाँग मारता है; दिव्य शक्ति पर श्रद्धा रखो और वह तुम्हारें अन्दर भागवत तत्वों को मुक्त कर देगी और दिव्य प्रकृति की अभिव्यक्ति में सब कुछ बदल देगी।
संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड-२५)
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…