माताजी,

पता नहीं क्यों, दो-तीन दिन से मैं कुछ उदास हैं। माताजी, कभी-कभी जब मैं अवसाद में होती है, जब मुझे लगता है कि सम्भवतः मैं योग न कर सकूँगी तो मेरा मन कल्पना करता है: “अगर माताजी मझसे कहें कि मैं योग नहीं कर सकती और मुझे यहाँ से चले जाने के लिए कहें तो मेरा कोई भी तो नहीं है जिसके यहाँ मैं जा सकूँ, ऐसी कोई जगह नहीं है जहाँ में रह सकूँ। मैं यहाँ नौकर की तरह भी रह लूँगी, लेकिन कहीं और रहना मेरे लिए असम्भव है।”

ऐसी बातें सोच कर मैं और भी उदास हो जाती हूँ।

मेरी माँ, मुझे लगता है कि आज मेरा मन इतना स्थिर नहीं है कि मैं आपको कुछ लिख सकूँ। आज मैंने ९ घण्टों तक साड़ी का काम किया।

 

मेरी प्यारी नन्हीं बच्ची,

तुम्हें अवसाद को स्वीकार न करना चाहिये, कभी नहीं, और इस प्रकार  के सुझावों को तो बिलकुल नहीं। कैसी मूढ़ताभरी मिथ्या बात है कि मैं तुमसे जाने के लिए कह सकती हूँ! तुम ऐसी बात का सपना भी कैसे ले सकती हो? तुम यहाँ अपने घर में हो, क्या तुम मेरी नन्हीं बेटी नहीं हो? तुम्हारा स्थान हमेशा मेरे पास रहेगा, मेरे प्रेम और मेरी सुरक्षा में।

संदर्भ : श्रीमातृवाणी  (खण्ड १६)

शेयर कीजिये

नए आलेख

अपने चरित्र को बदलने का प्रयास करना

सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…

% दिन पहले

भारत की ज़रूरत

भारत को, विशेष रूप से अभी इस क्षण, जिसकी ज़रूरत है वह है आक्रामक सदगुण,…

% दिन पहले

प्रेम और स्नेह की प्यास

प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…

% दिन पहले

एक ही शक्ति

माताजी और मैं दो रूपों में एक ही 'शक्ति' का प्रतिनिधित्व करते हैं - अतः…

% दिन पहले

पत्थर की शक्ति

पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…

% दिन पहले

विश्वास रखो

माताजी,  मैं आपको स्पष्ट रूप से बता दूँ कि में कब खुश नहीं रहती; जब…

% दिन पहले