अगर अपात्रता का भाव तुम्हें उमड़ती हुई कृतज्ञता से भर देता है और आनन्दातिरेक के साथ श्रीअरविन्द के चरणों पर डाल देता है तो जान लो कि यह सच्चे मूल स्रोत से आता है । इसके विपरीत यदि वह तुम्हें दीन-दु:खी बनाकर तुममें छिप जाने या भाग जाने का आवेग लाता है तो तुम निश्चित रूप से जान सकते हो कि इसका स्रोत विरोधी है । पहले की ओर तुम मुक्त रूप से खुल सकते हो, दूसरे को अस्वीकार करना चाहिये ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
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पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…