सुख और शान्ति अपने अन्दर बहुत गहराई में और दूर इसलिए अनुभव होते हैं क्योंकि ये चीजें चैत्य सत्ता में होती हैं और चैत्य सत्ता हमारे अन्दर बहुत गहराई में स्थित है और मन-प्राण से ढकी हुई है। जब तुम ध्यान करते हो तो तुम चैत्य सत्ता की ओर खुलते हो, गहराई में स्थित इस चैत्य सत्ता से सचेतन हो उठते हो और इन चीजों को महसूस करने लगते हो। ये सुख, शान्ति और प्रसन्नता दृढ़ और स्थायी हो जायें और सारी सत्ता में एवं शरीर में महसूस होने लगें, इसके लिए तुम्हें अपने अन्दर और भी गहराई में जाना होगा और चैत्य सत्ता की पूरी शक्ति को शरीर में लाना होगा। इसे नियमित एकाग्रता और ध्यान के द्वारा ही सबसे आसानी से किया जा सकता है, पर उसमें इस सच्ची चेतना के लिए अभीप्सा होनी चाहिये। इसे कर्म के द्वारा भी किया जा सकता है, आत्मोत्सर्ग के द्वारा, अपना कोई भी विचार किये बिना केवल भगवान् के लिए कर्म करने के द्वारा और हृदय में सदा श्रीमां के प्रति आत्मार्पण-भाव लिये कर्म करने के द्वारा किया जा सकता है। पर इसे पूरी पूर्णता के साथ करना आसान नहीं है।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग -२)
तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…