अचंचलता उस अवस्था को कहते हैं जब मन या प्राण विक्षुब्ध, अशांत तथा विचारों और भावनाओं के द्वारा बहिर्गत या परिपूर्ण न हों। विशेषत. जब दोनों (मन और प्राण) ही अनासक्त होते और इन सबको एक उपरितलीय क्रिया के रूप मे देखते हैं तो हम कहते हैं कि मन या प्राण अचंचल है।
सन्दर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग – २)
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...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…