श्री माँ का एजेंडा

दिव्यत्व कैसे ?

स्वयं को ब्रह्मांड की अंतिम सीमाओं और उससे भी आगे तक फैला दो। स्वयं के ऊपर ले लो विकास की…

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पराजय का विचार

जब भी कोई हार जाने वाला सुझाव हो - चाहे एक स्पंदन, एक विचार या और कुछ भी - तुम…

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तुम्हारी मान्यताएँ

अपनी मान्यता को साथ रखो यदि तुमको  यह लगता हो कि वह तुम्हारें जीवन के निर्माण में सहायक है ;…

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कभी-कभी

कभी-कभी मनुष्य को न जानना भी जानना चाहिए। संदर्भ: श्रीमाँ का एजेंडा (भाग-१)

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तुम्हारी दिलचस्पी

वास्तविक तथ्य यह है कि विश्व में जिस चीज़ में तुम्हारी दिलचस्पी है - सीधे या घुमावदार रूप में, वह…

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वस्तुओं को देखने का नजरिया

साधारण रूप से, सामान्य मनुष्य में भौतिक, शारीरिक चेतना चीजों को वैसे नहीं देखती जैसी कि वे वस्तुतः है ,…

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वे और मैं

मैं तो सिर्फ उस सबको कार्यान्वित कर रही हूँ जिसे उन्होने ध्यानस्थ और हृदयस्थ किया । मैं तो मात्र मुख्य-क्रिया-केंद्र…

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