कितनी मधुरता

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जब भक्त लोग श्रीमाँ के दर्शन को जाते थे तो उनके दिव्य रूप और माधुरी के प्रभाव से सुध-बुध खो…

श्रीअरविंद की उपस्थिती

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श्रीअरविंद निरंतर हमारे साथ हैं और जो लोग उन्हें देखने और सुनने के लिए तैयार हैं उनके आगे अपने -…

संसार में चलने के लिए

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. . . संसार का  जीवन अपने स्वभाव में अशांति का क्षेत्र है - उचित तरीके से उस पर चलने…

परात्पर भगवान

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जो श्रद्धा वैश्व भगवान के प्रति जाती है वह लीला की आवश्यकताओं के कारण अपनी क्रियाशक्ति में सीमित रहती है।…

जीवन

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एक समर्थ महाप्राण अपनी आन्तरिक शक्तियों के साथ हमारी इस बौनी लघुता को सहारा देता है जिसे हम जीवन कह…

श्रीअरविंद की गायत्री

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युग बदलते हैं और परिस्थितियों में परिवर्तन के साथ नए आदर्शों और नए मंत्रों की आवश्यकता होती है। प्रभु पुनः…

तुम किसी से …

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प्रातः पुष्प वितरण के समय श्रीमाँ को लगभग दो घंटे एक ही स्थान पर खड़े रहना पड़ता था। एक दिन…

सत्य को जीना

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सत्य लकीर की तरह नहीं सर्वांगीड है, वह उतरोत्तर नहीं बल्कि समकालिक है। अतः उसे शब्दो में व्यक्त नहीं किया…

दाँत ढीले कर दिये

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मोनिका चंदा अपने दोनों नेत्रों की दृष्टि खो बैठी थी। फिर भी यह वृद्ध भक्त-साधक महिला अपने वैभवमय जीवन को…

आवश्यकता या चाह

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यदि अपनी कामनाओं के पीछे-पीछे चलना ही एकमात्र करने-योग्य कार्य होता तो निश्चय ही यह बड़ा आसान होता; परंतु अपनी…