हे समस्त वरदानों के ‘परम वितरक’, तुझे, जो इस जीवन को शुद्ध सुन्दर और शुभ बना कर उसे औचित्य प्रदान करता है, तुझे, हे हमारी नियति के स्वामी, हमारी अभीप्साओं के लक्ष्य …
हम प्रगाढ़ भक्ति और असीम क्रतज्ञता के साथ तेरी हितकारी भव्यताओं के आगे प्रणत हैं।
हमारे विचारों, हमारे भावों और हमारे कर्मों का प्रभुसत्तासंपन्न स्वामी हो जा ।
तू ही हमारी सत्ता की यथार्थता, एकमात्र सद्व्स्तु है ।
तेरे बिना सब कुछ मिथ्या और भ्रम है, सब कुछ दु:खपूर्ण अन्धकार है ।
तेरे अन्दर ही है जीवन, ज्योति और आनन्द।
तेरे ही अन्दर है परम शान्ति।
संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…