श्रेणियाँ श्री माँ के वचन

हमारी क्रतज्ञता तथा उत्सर्ग

हे समस्त वरदानों के ‘परम वितरक’, तुझे, जो इस जीवन को शुद्ध सुन्दर और शुभ बना कर उसे औचित्य प्रदान करता है,  तुझे, हे हमारी नियति के स्वामी, हमारी अभीप्साओं के लक्ष्य …

हम प्रगाढ़ भक्ति और असीम क्रतज्ञता के साथ तेरी हितकारी भव्यताओं के आगे प्रणत हैं।

हमारे विचारों, हमारे भावों और हमारे कर्मों का प्रभुसत्तासंपन्न स्वामी हो जा ।

तू ही हमारी सत्ता की यथार्थता, एकमात्र सद्व्स्तु है ।

तेरे बिना सब कुछ मिथ्या और भ्रम है, सब कुछ दु:खपूर्ण अन्धकार है ।

तेरे अन्दर ही है जीवन, ज्योति और आनन्द।

तेरे ही अन्दर है परम शान्ति।

संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान 

 

शेयर कीजिये

नए आलेख

प्रार्थना

(जो लोग भगवान की  सेवा  करना चाहते हैं  उनके लिये एक प्रार्थना ) तेरी जय…

% दिन पहले

आत्मा के प्रवेश द्वार

यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…

% दिन पहले

शारीरिक अव्यवस्था का सामना

जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…

% दिन पहले

दो तरह के वातावरण

आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…

% दिन पहले

जब मनुष्य अपने-आपको जान लेगा

.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…

% दिन पहले

दृढ़ और निरन्तर संकल्प पर्याप्त है

अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…

% दिन पहले