सागर के समान अपनी करुणा औ’ मन्दिर की-सी नीरवता को लेकर
उसकी आन्तर सहायता, सबके ही लिए द्वार अब दीव का खोल रही थी ;
उसके अन्तरतम का प्रेम निराला इस सारी जगति से भी विस्तृत था,
उसके एक अकेले अन्तर में ही यह सारा जग आश्रय ले सकता था ।
संदर्भ : सावित्री
"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…
मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…
...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…