हमारा काम चाहे जो हो, हम चाहे जो करते हों, हमें उसे सचाई, ईमानदारी और अति सावधानी के साथ करना चाहिये, किसी निजी लाभ के लिए नहीं बल्कि भगवान् के प्रति अर्घ्य के रूप में जिसमें हमारी पूरी सत्ता का समर्पण हो। अगर सभी परिस्थितियों में सचाई के साथ यह मनोभाव रखा जाये तो जब कभी हमें काम को भलीभांति करने के लिए कुछ सीखने की जरूरत हो तो उस जानकारी को पाने का अवसर हमें मिल जाता है और हमें बस, उस अवसर का लाभ उठाना होता है।
सन्दर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…